Saturday, April 21, 2018

सेक्स क्रान्ति बनाम रेप की मानसिकता (भाग 2) - हीरेंद्र झा

उस दिन मैं मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनस स्टेशन पर था. मुझे जबलपुर की ट्रेन पकड़नी थी जो रात के 11 बजे खुलनी थी. मैं वहां 8 बजे ही पहुंच गया. ज़ाहिर है बहुत समय था मेरे पास. सोचा कुछ खा-पी लेते हैं और यही सोचकर मैं स्टेशन से बाहर निकल कर दूसरी तरफ को बढ़ गया. जो लोग मुंबई से बाहर के हैं उन्हें यह बता दूँ कि यह जो इलाका है यह अंग्रेजों ने बनाया है . ऊँची ऊँची चर्चनुमा बिल्डिंगें हैं और स्टेशन परिसर भी भव्य चर्च की किसी पुरानी इमारत सा है. रात के इस वक्त काफी अंधेरा पसरा था. हल्की हल्की रोशनी कहीं-कहीं से छिटक कर आ रही थी.  स्टेशन के ठीक राईट साइड में कई पेड़ भी लगे हैं कतारों से.

मैं जब थोड़ा आगे बढ़ा तो मैंने देखा कि पेड़ के नीचे एक लड़की खड़ी है, यही 17, 18 साल की होगी. मुझे देखकर उसने अदा से मुस्कुराने की कोशिश की. मैं थोड़ा झिझका फिर आगे बढ़ गया. दस कदम पर दूसरी लड़की मिली, वो भी मुझे देख कर स्माइल करने लगी. मैं अनदेखा कर फिर आगे बढ़ गया और इस बार तीसरी लड़की ने मुझे टोक ही दिया. ऐ चलता क्या? बगल में होटल है. एक हजार लूंगी, पूरा मज़ा दूंगी! अब तक मुझे समझ आ चुका था कि ये सब लड़कियाँ कौन हैं? मैं तीसरी लड़की के पास रुक गया. मैंने कहा- चलो. वो मेरे साथ हो ली. मुझे मालूम है कि स्टेशन के दूसरी तरफ गेट पर चाय की एक अच्छी दूकान है. मैंने कहा - चलो चाय पीते हैं पहले. उसने मुझे गौर से देखा और साथ चल पड़ी!

चाय पीते हुए मैंने उससे सवाल किया कि कब से कर रही हो ये सब? उसने कहा जब 12 साल की थी तब से. अब क्या उम्र होगी तुम्हारी? उसने कहा तुम्हें मालूम है न लड़कियों से उम्र नहीं पूछते. मैंने कहा नहीं मुझे ये नहीं मालूम. 'साला बड़ा शाना है रे' कह कर उसने मुझे गाली दी और कहा 26 साल. मैंने कहा- ओह, पूरा वनवास भुगत लिया है तुमने! 'बनवास' कह कर वो चौंकी? मैंने कहा हां अपने यहां वनवास 14 साल का ही होता है न जो तुम भुगत चुकी हो! 14 साल से इस पेशे में हो!



उसने कहा ज्यादा बात नहीं करने का. चाय खत्म कर और चल. तेरे बाद दो तीन को और निपटाने हैं! मैंने कहा कितना कमा लेती हो? उसने कहा दो ढाई हजार रोज़. कभी कभी सूखा भी रहता है. कोई पुलिस वाला मिल गया तो चवन्नी भी नहीं मिलती. फ्री में चाहिए बहन *** को!

तुम्हारी तरह कितनी लड़कियाँ होंगी इस इलाके में? साला तू सवाल बहुत पूछता है? चल न काहे को समय खराब कर रहा है. मैंने कहा कि ढाई हजार ले लेना मुझसे. निश्चिंत रहो. जो पूछता हूं बताओ. अब वो स्थिर हो गयी. मुझे लगा कि शायद उसको कोई संदेह है. मैंने पर्स से निकाल कर उसे पूरे पैसे दे दिए. अब वो थोड़ी सहज थी. मैंने कहा चलो दो घंटे हैं मेरे पास. कुछ खा लेते हैं. फिर हम वहां से एक टैक्सी लेकर कोलाबा की तरफ निकल गए. वेश्यावृति पर, उनकी समस्याओं पर, उनकी जीवन शैली पर उस लड़की ने बहुत कुछ बताया. बताया कि स्टेशन के आस-पास डेढ़ सौ लड़कियाँ हैं जो यह काम करती है. हम जहां उतरे उस इलाके के बारे में उसने बताया कि यहां तो पच्चास हजार से लेकर पांच लाख तक की रेट की लड़कियाँ मिलती हैं. उसने चिढते हुए कहा कि हमें तो पांच सौ और हज़ार देने में भी लोगों की फट जाती है! उस 'अजनबी' लड़की से बहुत बातें हुईं और फिर मैंने उससे विदा लिया और तय समय पर स्टेशन पहुंचकर अपनी ट्रेन पकड़ ली. उसने एक बार कहा- चलोगे नहीं? मैंने कुछ नहीं कहा..लौट आया!

खैर, उस दिन मुझे में समझ आया कि अगर ये लड़कियाँ न हो तो रेप की संख्या और भी कहीं ज्यादा होगी! देश के कई इलाकों में वेश्यावृति छुप कर ही सही पर हो रही है. और वहां ग्राहक भी पहुंच ही रहे हैं! देश, विदेश से लेकर नेपाल और बंगलादेश से लड़कियाँ यहां लायी जा रही हैं और इस धंधे में झोंकी जा रही हैं!

कहीं न कहीं सेक्स के प्रति जो पागलपन है उसने ही इन चकलाघरों को आबाद बनाकर रखा है. पता नहीं आप इन बातों को कैसे लेंगे पर मेरी राय तो यही है कि जो कमबख्त रेप करता है वो कम से कम इन वेश्वाओं के पास ही चला जाया करे.. कम से कम किसी मासूम की ज़िन्दगी तो तबाह नहीं होगी? एक तरीका यह भी हो सकता है रेप को रोकने का. अन्यथा न लीजियेगा, लेकिन, कुछ तो उपाय तलाशने ही होंगे न?

आज जब चार महीने से लेकर चार वर्ष तक की बच्ची के साथ रेप की खबर सुनता हूं तो बहुत ही असहाय सा महसूस करता हूं. ऐसे सिरफिरों से क्या कहेंगे आप? भला चार महीने या चार वर्ष की बच्ची को देखकर भी किसी को उत्तेजना हो सकती है? या फिर ये कहीं और की ठरक इन बच्चियों पर निकाला करते हैं?

इन मासूम बच्चों को हमें मिलकर बचाना होगा. सबसे ज़रुरी बात तो यह कि बच्चे के साथ हर वक्त उसके परिवार से कोई न कोई ज़रूर रहे. मां-बाप, दीदी, दादी कोई भी..बच्ची अकेली न रहे. अब समाज और सरकार तो कुछ कर नहीं रही तो हमें ही अब अपने बच्चों की सुरक्षा करनी है. क्या पता आपके सब्जी वाले से लेकर आपका धोबी या फिर आपका देवर ही आपकी मासूम पर बुरी नज़र रख रहा हो? बहुत भयावाह दौर है? तो किसी भी सूरत में बच्ची को अकेले ना छोड़े!



तीसरी बात, आज मोबाइल और इंटरनेट ने जाहिलों को एक ऐसी दुनिया दिखा दी है जहां वो फैंटेसी में रहने लगे हैं. पोर्न वीडियो में दिख रही लड़की और औरत को वो हर आस-पास की लड़कियों में देखने लगे हैं. उनके साथ वो सब कुछ करने के लिए उत्तेजित होने लगे हैं! यह बहुत ही खतरनाक स्तिथि है. इसे समझना होगा. वो बस एक मौके की तलाश में है कि वो अपनी खुमारी कहीं बहा सके. इन दरिंदों से हमें सचेत रहना होगा! इतनी बेरोजगारी और बेचैनी है इस देश में कि एक बड़ी आबादी सेक्स में ही सुकून तलाश रही है! इस मनोविज्ञान को समझना आसान नहीं पर अब इस पर खुलकर बात करने का समय आ गया है!

(यह लेख मैं जारी रखूँगा. मैं चाहता हूँ इस पर विस्तार से लिखूं और किसी समाधान तक पहुँचने की कोशिश करूँ)  
इससे पहले इस विषय पर मैंने कुछ और भी लिखा है, वो आप इस लिंक पर पढ़ सकते हैं-

सेक्स क्रान्ति बनाम रेप की मानसिकता- 1


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