Friday, April 20, 2018

सेक्स क्रान्ति बनाम रेप की मानसिकता- हीरेंद्र झा

रेप की ख़बरें तब से भयावह लगने लगी है, जबसे रेप का मतलब समझ में आया. मेरी एक दोस्त ने मुझे बताया था कि एक बार जब वो चौदह साल की थी तो उसके एक रिश्तेदार ने जो उसकी पिता की उम्र का था उसे छत पर अकेला पाकर उसके देह को गलत तरीके से छुआ था. उसने आगे बताया कि तब उसे बिल्कुल भी अहसास नहीं था कि उसके साथ क्या हो रहा है पर वो आज बीस साल बाद भी उन पलों को याद कर सिहर उठती है. जब एक ‘बैड टच’ का इतना गहरा असर है तो सोचिये रेप के वक्त किसी लड़की/बच्ची/महिला/ की क्या हालत होती होगी?



वो असहनीय दर्द, वो बेबसी, वो दुर्गंध, वो जबर्दस्ती...शब्दों में बयां कोई क्या कर सकेगा? और छोटी-छोटी बच्चियों से जब रेप की ख़बरें आती हैं तो रूह तक कांप जाती है. उस दरिंदे की मानसिकता का अंदाज़ा कोई कैसे लगा सकता है? एक बच्ची जिसकी आंखों की चमक और मासूमियत आपको सुकून दे रही हो उसको देखकर किसी का हवस कैसे जग जाता होगा? सेक्स के लिए ये कैसा पागलपन है?



क्या पोर्न इसका जिम्मेदार है? या परवरिश में कोई चूक हो रही है? बहुत उलझा हुआ सा है सबकुछ! एक मेरी दोस्त ने बताया कि जब वो गर्ल्स हॉस्टल में रहा करती थी तो एक रात देर तक पढ़ाई करने के बाद जब उसने ताज़ा हवा के लिए खिड़की के बाहर  देखा तो यह देखकर चौंक गयी थी कि कैसे होस्टल का वाचमैन लड़कियों के कमरों की तरफ देख कर मास्टरबेट कर रहा है! दरअसल सेक्स को लेकर यह पागलपन हर तरफ फैला है? रेप के आंकड़े बड़े ही डरावने हैं! गाँव से लेकर शहर, कश्मीर से लेकर कर्नाटक तो हरियाणा से लेकर असम शायद ही इस देश का कोई ऐसा कोना बचा हो जहां मर्दों ने अपनी हवस का नंगा नाच न किया हो? 



कितनी ही दामिनी, गुड़िया और पापा की लाडली बिटिया ऐसी भी हैं जिनके साथ हुए वहशीपने को कभी आवाज़ न मिल सकी! उनकी चुप्पियों ने भी बलात्कारियों को दूसरे और तीसरे शिकार का मौका दिया ही होगा?




सेक्स की बात करें या सेक्स की आनंद की बात करें तो दो एडल्ट लोग पारस्परिक रूप से संबंध बनाते हैं और यह एक नेचुरल क्रिया है. माना कि मैरिटल रेप जैसी बातें भी हम सुनते हैं लेकिन, एक सामान्य आदमी कभी भी अपने पार्टनर के उदास होने, मूड खराब होने के दौरान उसके साथ सेक्स नहीं करता. सेक्स सहमती से ही संभव है, चाहे वो बेमन से ही हो. ऐसे में जो मानसिक रोगी बलात्कार तक कर लेते हैं उनके धधकते हुए जिस्मानी भूख या पागलपन को समझना आसान नहीं? क्योंकि एक स्तर पर गिरने या पहुँचने के बाद ही आप रेपिस्ट हो सकते हैं! रेप के आंकड़े बताने के लिए काफी है कि अपने देश का मर्द किस हद तक गिर गया है.




एक यह भी तर्क है कि लड़की ने ही भड़कीले कपडे पहनकर और अपना क्लीवेज दिखाकर या अंग प्रदर्शन कर रेपिस्ट (मर्द नहीं लिख रहा हूँ) को उकसाया. तो फिर 4 साल की बच्ची या 70 साल की बूढी महिला का रेप क्यों होता है? अगर तर्क यह है कि परिवार से दुश्मनी निकालने के लिए उक्त लड़की का रेप हुआ तो आखिर ऐसा क्यों है कि आपकी मर्दानगी बस इन महिलाओं और लड़कियों पर ही निकलती है? अगर रेप के पीछे कोई यह तर्क दे कि वो रात को अकेली सड़क पर क्या कर रही थी तो उनसे पूछना चाहूँगा कि वो सड़क पर है, किसी जंगल में नहीं और ज़ाहिर है कोई विवशता या आवश्यकता ही होगी तभी वो बेवक्त घर से निकली है! शराब पीने से लेकर खुलकर हंसने तक के तर्क बेईमानी है! क्योंकि किसी की मर्जी के खिलाफ उसको जब गले तक नहीं लगा सकते आप तो रेप कैसे कर सकते हैं?



कानून क्या कर रहा है? पैसा और पावर जिसके पास है वो सुरक्षित हैं, रेपिस्ट अगर नाबालिग है तो उसके लिए अलग कानून! आंकड़े बताते हैं कि रेप में अगर 20 प्रतिशत केस दर्ज होते हैं तो सज़ा सिर्फ 2 प्रतिशत लोगों को ही मिल पाता है. न्याय की तो बात ही मत कीजिये, न्याय इस देश में अब इतिहास की बात है. आँखों पर पट्टी बांधे कानून की तराजू उठाये उस मूर्ति को म्युजियम में रख दीजिये! ‘सत्यमेव जयते’ लिखने वाले और मानने वाले कब के इस दुनिया को अलविदा कह चुके.



बेटियों पर दुनिया भर की पाबंदियां, बेटों को हर कुछ करने की छूट. बेटों के स्कूल से लौटने पर चूल्हे पर गर्म गर्म सिकतीं रोटियां तो बेटियाँ ठंडा भी खा लेंगी! खुद मां-बाप तक जब बेटी और बेटे में फर्क करे तो उस समाज का चेहरा ऐसा ही विकृत होगा जैसा आज आपको दिख रहा है. ज़ाहिर है अपवाद होंगे पर वो मिसाल नहीं बनते!




हाल ही में एक दिन मैं शनिवार को अपने घर के पास समंदर किनारे यूँ ही घूमने को जा रहा था. मैं ऑटो में था. अक्सा बीच का इलाका थोड़ा सुनसान सा है. तभी मेरी नज़र साथ चल रही गाड़ी पर गयी! जिसे एक जेंट्स ड्राइव कर रहा था, एक महिला उसके बगल में बैठी थी. पीछे की सीट पर दो बच्चे थे. मुश्किल से दोनों बच्चों की उम्र नौ या दस साल की रही होगी. मैं यह देखकर दंग रह गया कि दोनों बच्चे सीट के पीछे छुपकर एक दूसरे को किस कर रहे हैं, जिस तरह से उन दोनों बच्चों के होंठ एक दूसरे से मिले हुए थे यह देखकर मैं भीतर तक हिल गया! हो सकता है वो भाई-बहन हो? या फिर दोनों के पेरेंट्स आपस में दोस्त या रिश्तेदार हो, लेकिन, बड़ा सवाल है इन बच्चों को यह सीख कहां से मिली? 



बहुत सोचा तो लगा कि हो सकता है इन्होने अपने मां और बाप को सेक्स करते या कुछ यूँ करते देखा होगा, या शायद फ़िल्मों का असर हो ये? यानी ट्रेनिंग जो है, बुनियाद जो है वहीं गड़बड़ है! मुझे याद है साल 2007 में एक अंग्रेजी अखबार ने एक बड़ा सर्वे किया था जिसमें उन्होंने बताया कि दिल्ली के स्कूलों में 12 वीं पास करते-करते 90 प्रतिशत लड़कियां अपनी वर्जिनिटी (कौमार्य) खो देती हैं. हालांकि, यह रेप से इतर एक बात है लेकिन, यह आंकड़ा यह बताने के लिए काफी है कि सेक्स के लिए किस हद तक पागलपन है इस देश के डी एन ए में! जब मैं ‘आधी आबादी’ पत्रिका का सहायक संपादक था तो मैंने एक बड़ा लेख लिखा था –भारत सेक्स क्रांति की ओर.. मैं वह लेख भी खोज कर शेयर करूँगा! 



बहरहाल, परवरिश और शिक्षा में जो बिखराव/भटकाव है उस आग में ईंधन देने का काम मीडिया, सिनेमा, अश्लील साइट्स सब लगातार कर रहे हैं! इतनी भीड़ है इस देश में कि एक प्रतिशत लोग भी बलात्कारी निकल गए तो यह आंकड़ा लाखों में होगा. और एक लाख बलात्कारी जिस देश में रह रहा हो उसे आप क्या कहेंगे – बलात्कारियों का देश..है न? इसके अलावा भीड़ में, बाज़ार में, ट्रेन में, बस में, मेट्रो में, गलियों में, सड़कों पर जिसे भी जहां मौका मिल रहा है वो अपनी कुंठाओं को भोग रहा है?






(यह लेख मैं जारी रखूँगा. मैं चाहता हूँ इस पर विस्तार से लिखूं और किसी समाधान तक पहुँचने की कोशिश करूँ)  



4 comments:

Reetesh Khare said...

मन की क़लम...ज़हन की क़लम..संयम को क़लम...कसी कसी मगर मुद्दे के हर फैलाव को अपनी ज़द में समेटी हुई क़लम।
सच्ची पत्रकारिता की परिभाषा तो एक विलुप्त प्राणी की तरह हो गयी है, मगर सकारात्मक विस्मय होता है, तुममें उसे
परिलक्षित कर के। विषय के बारे में बस इतना ही, कि लोगों की चेतना में उतरे ये कड़वे सच और आगे तुम्हारी विचार मीमांसाएं जनहित में जारी कोई समाधान ज़रूर लाएं। शुभकामनाएं!!!

NIDHI JAIN said...

बहुत उम्दा लिखा है हीरेन्द्र। मेरे मन की सबके मन की बात लिखी है। पढ़ कर अच्छा लगता है की कोई तो समझता है, समझदार है और आवाज़ बुलंद कर जगा रहा है। लिखते रहो।

Hirendra Jha said...

शुक्रिया रीतेश और निधि दी

Unknown said...

सारे बातों का समावेश कर दिया आपने... काश उस हुजूम तक भी ये बात पहुंचे जो मानसिकता से कमजोर है पर मर्दानगी का दम भरते हैं।

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