इस हिस्से में आप पढ़िये मेरे कुछ चुनिंदा प्रेमपत्र.. जो मैंने किसी प्रेमिका के नाम नहीं बल्कि समय ने जीवन के नाम लिखे हैं. उम्मीद है आपको पसंद आएगा. टिप्पणियों का स्वागत है!
#प्रेमपत्र 1
मैं फुटपाथ पर तपता रिक्शा हूँ। तुम एयर कंडिशन्ड दिल्ली मेट्रो। मैं जानता हूँ हम कभी मिल नहीं सकते पर क्या तुम जानती हो शहर के हरेक कोने से तुम्हारे चाहने वालों को ढो-ढोकर मैं ही तो तुम तक पहुंचाता हूँ...अरे, अरे डरो मत, मुझे बदले में कुछ नहीं चाहिए! जो संभव हो तो बस इतना करना कि जब भी किसी स्टेशन पर रुको... एक हॉर्न मेरे नाम से बजा देना... इस से ज़्यादा की न ख़्वाहिश है न उम्मीद। #हीरेंद्र #प्रेमपत्र
#प्रेमपत्र 2
मैं लखनऊ के बंगला बाजार में लगने वाला फुटपाथी देहाती हाट तो तुम हजरतगंज की शानो-शौकत लिए चमचमाती शॉपिंग कॉम्प्लेक्स! नगर निगम के आतंक के साए में बसता-उजड़ता मैं तो सारे शहर की आंखों का नूर बन चमकते, संवरते तुम! खुद को बनाये/ बचाये रखने के लिए उधार का सौदा करने की बेबसी से बंधा मैं तो अपने विस्तार के लिए तुम्हारे पास दिवाली से लेकर वैलेंटाइन डे तक के ऑफर्स और स्कीमें! खरीदारों के मोलभाव को अभिशप्त मैं तो 'फिक्सड रेट' का वरदान लिए तुम! सुनो, जब मैं धूल उड़ाती किसी कार को तुम्हारी तरफ तेजी से जाते हुए देखता हूं तो मेरा मन भी तुमसे मिलने को मचलने लगता है! काश कि किसी रोज़ कोई गाड़ी वाला मेरे पास भी पल भर को रुक जाए तो मैं उसे एक सफेद फूलों का महकता गजरा दे सकूं..जो वह तुम तक पहुंचा दे! इससे ज्यादा की उम्मीद है न ख्वाहिश! #हीरेंद्र #प्रेमपत्र
#प्रेमपत्र 3
मैं सस्ते कागज पर छपने वाला हिंदी का एक चलताऊ सा अख़बार तो तुम रंग, तरंग और विज्ञापनों से सजी-धजी कोई नेशनल अंग्रेजी टाइम्स। सैलून वाले से लेकर नुक्कड़ के चाय वाले तक! बस यही मेरे तलबगार हैं तो तुम पीएमओ से लेकर पेज थ्री तक की धड़कन हो। मेरे कुछेक हज़ार तो तुम्हारे करोड़ों चाहने वाले! तुम कॉर्पोरेट की पहली पसंद हो तो मैं बस औपचारिकताएं निभा रहा हूँ। अपना-अपना प्रारब्ध। हाँ पेड न्यूज़ की बात नहीं करूंगा.. लेकिन, तुमसे बस यही कहना है कि जो कभी संभव हो सके तो कम से कम एक दिन मेरे बारह पन्नों को अपने अस्सी पन्नों के बीच छुपाकर घर-घर पहुंचा देना। इस से ज़्यादा की उम्मीद है न ख्वाहिश! #हीरेंद्र #प्रेमपत्र
#प्रेमपत्र 4
मैं मनरेगा हूँ। तुम प्रधानमंत्री मोदी की जन-धन योजना। वर्षों बीत गए लेकिन मैं आज भी एक उलाहना से ज़्यादा कुछ हो न सका! तुम तो आते ही छा गयी। मैं राष्ट्र की विवशता हूँ...तुम देश का गौरव हो। मुझे अखबार तक ने कभी ठीक से छापा नही...तुम गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज़ हो गए। अब क्या कहूँ? बस इतना याद रखना कि कोई है जो तुम्हारी तरह होना चाहता है..इस से ज़्यादा की उम्मीद है न ख्वाहिश! #हीरेंद्र #प्रेमपत्र
1 comment:
बहुत ही अच्छी तुलनात्मक अभिब्यक्ति प्रेम पत्र के माध्यम से।
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